माँ संतोषी चालीसा
नमो! नमो! प्रणवो, स्वधा, स्वाहा पूरण काम।
जगत जननी मंगल करनी, संतोषी सुखधाम॥
जय जय माँ संतोषी रानी। सब जग विदित तुम्हीं कल्याणी॥
रूप तुम्हारा अधिक सुहावे। दर्शन कर अति ही सुख पावे॥
खड्ग त्रिशूल अरु खप्पर धारी। हे माँ संतोषी भय हारी॥
उर पर पीत पुष्प की माला। तुम हो आदि सुंदरी बाला॥
तुम करुणामयी मातु पुनीता। नमो नमामि सर्व सुखदाता॥
गहे जो कोई शरण तुम्हारी। तुम उस जन की विपदा हारी॥
उज्जवल वर्ण तनु नयन विशाला। कृपा करो हे मात दयाला॥
सब जन शक्ति तुम्हारी माने। गणपति-पुत्री सभी जग जाने॥
संकट हरनी संकट हरती। भक्त जनन का मंगल करती॥
कृपा तुम्हारी होती जिस पर। कृपा करे सब कोई उस पर॥
भुवनेश्वरी सदा दुख हरती। अन्नपूर्नेश्वरी सदा घट भरती॥
शुक्रवार व्रत-कथा जो करता। सब संकट से पल में तरता॥
गुड अरु चना तुम्हें है भाते। प्रेम सहित सब भोग लगाते॥
व्रत के दिन वर्जित है खटाई। सब जन या विधि करे उपाई॥
क्रोध करो तब तुम रुद्राणी। सौम्या करुणामयी ब्रह्माणी॥
विधि विधान से पूजन करते। हिय को ज्ञान ज्योति से भरते॥
मन वाँछित फल जब कोई पावे। खाजा खीर तब बालक पावे॥
सुखप्रद कथा पढ़े सन्नारी। मनभावन वर पाये कुमारी॥
सत की नौका खेवन हारी। जग में महिमा व्याप्त तुम्हारी॥
अछत सुहाग सदा सुख देती। दुःख हरती गृह-क्लेश मिटेती॥
आलस पाप अविद्या नाशिनी। हे माँ मम हिय ज्ञान प्रकाशिनी॥
जो तव चरण धूलि पा जाता। सत मार्ग चल सब सुख पाता॥
हिय से सुमिरन करे जो कोई। उस पर कृपा मात की होई॥
अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता। शिव पौत्री दुख नाशक त्राता॥
माँ का घट कभी रहे न रीता। कथा भाव सुन बहे सरिता॥
यश वैभव धन तेज की दाता। विद्या बुद्धि शील बल माता॥
तुम भक्त बृज सम अटल भी होई। तरे सकल संकट सो सोई॥
शंख बाजे जब द्वार तुम्हारे। जय माँ जय माँ करें माँ के प्यारे॥
दम्ब द्वेष दुर्भाव को हर लो। हे माँ चरण शरण में धर लो॥
माँ जन-जन की हरो उदासी। तुम तो हो घट-घट की वासी॥
सब को तुम संग मिलना ऐसे। नदियाँ मिलें सिन्धु में जैसे॥
अनजाने भय ग्रस्त सब प्राणी। मन में शक्ति दो हे महारानी॥
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन। ऐसे हों माँ जग के सब जन॥
कृपा करो हम पर कल्याणी। सिद्ध करो माँ अब मम वाणी॥
सकल सृष्टी की पालन कर्ता। मैं तो जानू तुम सभी समर्था॥
हे भय हारिणी हे भव तारिणी। हे ममतामयी त्रिशूल धारिणी॥
जबतक सबजन जीयें फल पाते।तबतक सदा तुम्हारे गुण गाते॥
गाए गान गुण गोबू तुम्हारे। कटें जनम-जनम के ये फेरे॥
जब मम हियगति निश्चल होई।तब आँचल धर भवसागर तरई॥
जो जन पढ़े माँ संतोषी चालीसा। होई साक्षी ॐ माँ गिरीशा॥
यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करे जो कोय।
ता पर कृपा प्रसन्नता, माँ संतोषी की होय॥
जगत जननी मंगल करनी, संतोषी सुखधाम॥
जय जय माँ संतोषी रानी। सब जग विदित तुम्हीं कल्याणी॥
रूप तुम्हारा अधिक सुहावे। दर्शन कर अति ही सुख पावे॥
खड्ग त्रिशूल अरु खप्पर धारी। हे माँ संतोषी भय हारी॥
उर पर पीत पुष्प की माला। तुम हो आदि सुंदरी बाला॥
तुम करुणामयी मातु पुनीता। नमो नमामि सर्व सुखदाता॥
गहे जो कोई शरण तुम्हारी। तुम उस जन की विपदा हारी॥
उज्जवल वर्ण तनु नयन विशाला। कृपा करो हे मात दयाला॥
सब जन शक्ति तुम्हारी माने। गणपति-पुत्री सभी जग जाने॥
संकट हरनी संकट हरती। भक्त जनन का मंगल करती॥
कृपा तुम्हारी होती जिस पर। कृपा करे सब कोई उस पर॥
भुवनेश्वरी सदा दुख हरती। अन्नपूर्नेश्वरी सदा घट भरती॥
शुक्रवार व्रत-कथा जो करता। सब संकट से पल में तरता॥
गुड अरु चना तुम्हें है भाते। प्रेम सहित सब भोग लगाते॥
व्रत के दिन वर्जित है खटाई। सब जन या विधि करे उपाई॥
क्रोध करो तब तुम रुद्राणी। सौम्या करुणामयी ब्रह्माणी॥
विधि विधान से पूजन करते। हिय को ज्ञान ज्योति से भरते॥
मन वाँछित फल जब कोई पावे। खाजा खीर तब बालक पावे॥
सुखप्रद कथा पढ़े सन्नारी। मनभावन वर पाये कुमारी॥
सत की नौका खेवन हारी। जग में महिमा व्याप्त तुम्हारी॥
अछत सुहाग सदा सुख देती। दुःख हरती गृह-क्लेश मिटेती॥
आलस पाप अविद्या नाशिनी। हे माँ मम हिय ज्ञान प्रकाशिनी॥
जो तव चरण धूलि पा जाता। सत मार्ग चल सब सुख पाता॥
हिय से सुमिरन करे जो कोई। उस पर कृपा मात की होई॥
अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता। शिव पौत्री दुख नाशक त्राता॥
माँ का घट कभी रहे न रीता। कथा भाव सुन बहे सरिता॥
यश वैभव धन तेज की दाता। विद्या बुद्धि शील बल माता॥
तुम भक्त बृज सम अटल भी होई। तरे सकल संकट सो सोई॥
शंख बाजे जब द्वार तुम्हारे। जय माँ जय माँ करें माँ के प्यारे॥
दम्ब द्वेष दुर्भाव को हर लो। हे माँ चरण शरण में धर लो॥
माँ जन-जन की हरो उदासी। तुम तो हो घट-घट की वासी॥
सब को तुम संग मिलना ऐसे। नदियाँ मिलें सिन्धु में जैसे॥
अनजाने भय ग्रस्त सब प्राणी। मन में शक्ति दो हे महारानी॥
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन। ऐसे हों माँ जग के सब जन॥
कृपा करो हम पर कल्याणी। सिद्ध करो माँ अब मम वाणी॥
सकल सृष्टी की पालन कर्ता। मैं तो जानू तुम सभी समर्था॥
हे भय हारिणी हे भव तारिणी। हे ममतामयी त्रिशूल धारिणी॥
जबतक सबजन जीयें फल पाते।तबतक सदा तुम्हारे गुण गाते॥
गाए गान गुण गोबू तुम्हारे। कटें जनम-जनम के ये फेरे॥
जब मम हियगति निश्चल होई।तब आँचल धर भवसागर तरई॥
जो जन पढ़े माँ संतोषी चालीसा। होई साक्षी ॐ माँ गिरीशा॥
यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करे जो कोय।
ता पर कृपा प्रसन्नता, माँ संतोषी की होय॥