बुधवार, 31 दिसंबर 2008

माँ संतोषी चालीसा...

माँ संतोषी चालीसा
नमो! नमो! प्रणवो, स्वधा, स्वाहा पूरण काम।
जगत जननी मंगल करनी, संतोषी सुखधाम॥
जय जय माँ संतोषी रानी। सब जग विदित तुम्हीं कल्याणी॥
रूप तुम्हारा अधिक सुहावे। दर्शन कर अति ही सुख पावे॥
खड्ग त्रिशूल अरु खप्पर धारी। हे माँ संतोषी भय हारी॥
उर पर पीत पुष्प की माला। तुम हो आदि सुंदरी बाला॥
तुम करुणामयी मातु पुनीता। नमो नमामि सर्व सुखदाता॥
गहे जो कोई शरण तुम्हारी। तुम उस जन की विपदा हारी॥
उज्जवल वर्ण तनु नयन विशाला। कृपा करो हे मात दयाला॥
सब जन शक्ति तुम्हारी माने। गणपति-पुत्री सभी जग जाने॥
संकट हरनी संकट हरती। भक्त जनन का मंगल करती॥
कृपा तुम्हारी होती जिस पर। कृपा करे सब कोई उस पर॥
भुवनेश्वरी सदा दुख हरती। अन्नपूर्नेश्वरी सदा घट भरती॥
शुक्रवार व्रत-कथा जो करता। सब संकट से पल में तरता॥
गुड अरु चना तुम्हें है भाते। प्रेम सहित सब भोग लगाते॥
व्रत के दिन वर्जित है खटाई। सब जन या विधि करे उपाई॥
क्रोध करो तब तुम रुद्राणी। सौम्या करुणामयी ब्रह्माणी॥
विधि विधान से पूजन करते। हिय को ज्ञान ज्योति से भरते॥
मन वाँछित फल जब कोई पावे। खाजा खीर तब बालक पावे॥
सुखप्रद कथा पढ़े सन्नारी। मनभावन वर पाये कुमारी॥
सत की नौका खेवन हारी। जग में महिमा व्याप्त तुम्हारी॥
अछत सुहाग सदा सुख देती। दुःख हरती गृह-क्लेश मिटेती॥
आलस पाप अविद्या नाशिनी। हे माँ मम हिय ज्ञान प्रकाशिनी॥
जो तव चरण धूलि पा जाता। सत मार्ग चल सब सुख पाता॥
हिय से सुमिरन करे जो कोई। उस पर कृपा मात की होई॥
अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता। शिव पौत्री दुख नाशक त्राता॥
माँ का घट कभी रहे न रीता। कथा भाव सुन बहे सरिता॥
यश वैभव धन तेज की दाता। विद्या बुद्धि शील बल माता॥
तुम भक्त बृज सम अटल भी होई। तरे सकल संकट सो सोई॥
शंख बाजे जब द्वार तुम्हारे। जय माँ जय माँ करें माँ के प्यारे॥
दम्ब द्वेष दुर्भाव को हर लो। हे माँ चरण शरण में धर लो॥
माँ जन-जन की हरो उदासी। तुम तो हो घट-घट की वासी॥
सब को तुम संग मिलना ऐसे। नदियाँ मिलें सिन्धु में जैसे॥
अनजाने भय ग्रस्त सब प्राणी। मन में शक्ति दो हे महारानी॥
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन। ऐसे हों माँ जग के सब जन॥
कृपा करो हम पर कल्याणी। सिद्ध करो माँ अब मम वाणी॥
सकल सृष्टी की पालन कर्ता। मैं तो जानू तुम सभी समर्था॥
हे भय हारिणी हे भव तारिणी। हे ममतामयी त्रिशूल धारिणी॥
जबतक सबजन जीयें फल पाते।तबतक सदा तुम्हारे गुण गाते॥
गाए गान गुण गोबू तुम्हारे। कटें जनम-जनम के ये फेरे॥
जब मम हियगति निश्चल होई।तब आँचल धर भवसागर तरई
जो जन पढ़े माँ संतोषी चालीसा। होई साक्षी ॐ माँ गिरीशा॥
यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करे जो कोय।
ता पर कृपा प्रसन्नता, माँ संतोषी की होय॥

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

संतोषी माता पूजा, कथा और उद्यापन कि विधि

संतोषी माता के पिता गणेश, माता रिद्धी-सिध्दि धन, धान्य, सोना, चांदी, मूंगा, रत्नों से भरा परिवार, गणपति माता की लाड भरी, गणपति पिता की दुलार, गणपति देव की कमाई, धंधे में बरकत, दरिद्रता दूर, कलह-क्लेश का नाश, सुख-शान्ति का प्रकाश, बालकों की फुलवारी, धंधे में मुनाफे की कमाई भारी, मनोकामना पूर्ण, शोक विपत्ति चिंता सब चूर्ण, संतोषी माता का लो नाम, जिससे बन जाए सब काम, बोलो... संतोषी माता की जय।
पूजा और कथा
व्रत-पूजा के लिए माँ संतोषी के चित्र के सामने जल से भरे पात्र के ऊपर एक कटोरी में गुड और भुने हुए चने रखें। गुड-चने की मात्रा अपनी सहूलियत के अनुसार कुछ भी रख सकतें हैं, कम-ज्यादा का कोई विचार न करें। जितना बन पड़े श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न-मन व्रत करना चाहिए, क्यों कि माता तो भावना कि भूखी है। इस व्रत को करने वाला कथा कहते समय हाथों में गुड और भुने हुए चने रखे। सुनने वाले 'संतोषी माता की जय' मुख से बोलते जायें। सुनने वाला कोई न मिले तो दीपक जला कर उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहें। कथा पूरी होने पर आरती, भोग लगाने के समय की विनती और चालीसा का पाठ करें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड और चना गौमाता को खिलावें। कलश पर रखा गुड-चना सबको प्रसाद के रूप में बाटें। कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिडकें, बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में सींच देवें।
उद्यापन
व्रत के उद्यापन में ढाई सेर खाजा, मोयमदार पुरी, चने कि सब्जी और खीर का भोग लगाना चाहिए। इस दिन कथा के समय नैवेद्य रखे घी का दीपक जला संतोषी माता कि जय जय कार बोल नारियल फोड़ना चाहिए । इस दिन खटाई न खावें, खट्टी वस्तु खाने से माता का कोप होता है। इसलिए उद्यापन के दिन भोग कि किसी सामग्री में खटाई न डालें। न आप खाएं, न किसी दुसरे को खानें दें। इस दिन आठ लड़कों को भोजन करावें। देवर-जेठ घर कुटुंब का मिलता हो पहले उन्हें बुलावें। न मिलें तो रिश्तेदारों, ब्राह्मणों या पड़ोसियों के लड़के बुलावें। भोजन कराने के बाद उन्हें यथा-शक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे या खटाई कि कि कोई वस्तु न देवें। व्रत करने वाला कथा सुन एक समय भोजन-प्रसाद ले। इस प्रकार माता अत्यन्त प्रसन्न होंगी। दुख दरिद्रता दूर होकर चाही मुराद पूरी होगी।

सोमवार, 29 दिसंबर 2008

फ़िल्म से नहीं, सृष्टी में आदिकाल से है माँ संतोषी

माँ संतोषी, उनके महात्म और व्रत-पूजा से सम्बंधित सभी बातें एक-एक कर क्रम से बताना चाहता था, लेकिन अब लगता है, यह सब आप पर ही छोड़ना होगा। जैसी माँ की मर्जी .........
तो पहले उन बेनामी सज्जन की जिज्ञासा का समाधान जो ये जानना चाहते है की "जय संतोषी माँ" फ़िल्म से पहले संतोषी माता कहाँ विराजमान थीं?
बन्धु, माँ संतोषी आदि काल से सृष्टी में हैं। ये आदि शक्ति का ही एक रूप है। विभिन्न युगों में स्थाई सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए जैसे दीर्घकालीन साधनाए की जाती रहीं हैं। कलियुग में इच्छाओं और वासनाओं का रूप बदला है। छोटी-छोटी सांसारिक कामनाएँ और समस्याएं हैं। जिनका तत्काल निदान पाने के लिए कम समय वाले छोटे अनुष्ठान और त्वरित फल देने वाले देवी-देवताओं के परम भक्तों का आह्वान किया जाता है। हनुमान जी , भैरों जी, विभिन्न जुझार और सतियाँ इनमें शामिल है। माँ संतोषी आदि शक्ति की तीसरी पीढी या स्तर का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये विघ्न हरता परम संतुष्ट गणेश की पुत्री और शिव-शक्ति अर्थात शंकर और पार्वती की पौत्री हैं। ये किसी काम या कामना के तत्काल निदान के लिए पूजी जाती हैं। इसलिए सोलह शुक्रवार की व्रत-पूजा का विधान है।
यह सही है की सन १९७५ में जब इनकी कथा पर आधारित फ़िल्म रिलीज हुई तो संतोषी माता एकाएक अधिक प्रकाश ने आई। यह फ़िल्म उस काल की सुपर-डुपर हिट साबित हुई। आप की जिज्ञासा का समाधान इसी में निहित है। अर्थात उस समय भी संतोषी माता के भक्तों की संख्या इतनी थी, जिन्होंने एक साधारण सी लो बजट की फ़िल्म को ब्लोकबस्टर बना दिया। उस वक्त और उससे पूर्व भी उत्तर भारत में इन्हें संतोषी माता और पूर्वी भारत में संकटा देवी के नाम से पूजा जाता रहा है।

रविवार, 28 दिसंबर 2008

अपनों से... अपनी बात

माँ संतोषी के भक्तों का अपने इस ब्लॉग पर स्वागत है। हालाँकि उम्र के इस पड़ाव पर संपर्क और संवाद के लिए कंप्यूटर का उपयोग कुछ असहज लगता है, लेकिन जैसा मैं हमेशा कहता रहा हूँ कि कुछ सीखने या जानने के लिए कोई उम्र बाधा नहीं होती। ....इसलिए मैंने इसे जान लिया। राजस्थान के अजमेर नगर में एक छोटे से मन्दिर में माँ संतोषी के चरणों में रहते हुए दूर-दराज बसे माँ के भक्तों कि जिज्ञासाओं और समस्याओं का समाधान करना सम्भव नहीं हो रहा था। इसलिए सब कि सलाह पर यह क्रम आरम्भ किया है। आशा है अब दुबई, स्पेन, स्वीडन या साऊथ अफ्रीका में संतोषी माता कि व्रत कथा, चालीसा, आरती कि पुस्तिका या माता का चित्र तलाश करने कि परेशानी नहीं होगी। राजस्थान और देश के अन्य भागों से फोन और पत्रों से संपर्क रखने वालों को पूछताछ और जानकारियां प्राप्त करने में भी सहूलियत होगी......यही आशा है। जय माँ संतोषी......